अव्यय / अविकारी शब्द | Avyay in hindi pdf

अव्यय / अविकारी शब्द Avyay In Hindi Pdf की इस पोस्ट में अव्यय की परिभाषा कीस है? अव्यय के भेद कितने है? और अव्यय को विस्तारपूर्वक समझाया गया है| यह पोस्ट राजस्थान में होने वाली विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओ जेसे REET, CTET, UPTET, RAS, V.D.O., PATWAR, RPSC 1st GRADE, 2nd GRADE आदि के लिए महत्वपूर्ण है| Avyay In Hindi Pdf

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Avyay In Hindi Pdf

अव्यय की परिभाषा

परिभाषा :- ऐसे शब्द जिनमें लिंग, वचन, पुरुष, कारक आदि के प्रयोग से कोई विकार उत्पन्न नहीं होता, ‘ अविकारी शब्द’ या ‘ अव्यय’ कहलाते हैं।
यथा:
अभी मैं नहीं आ सकता।
वह भी आपके साथ जाएगा।
जब अविनाश आएगा तब वह जाएगा।
कविता और सविता बहनें हैं।
तुम कहाँ गए थे?

अव्यय की विशेषता क्या है?

अव्यय शब्दों रूप नहीं बदलता, अतः इन्हें ‘ अविकृत, अविकारी या अपरिवर्तनशील’ कहते हैं। अव्यय किसी अन्य शब्द के साथ लगकर उसे भी अव्यय बना देते हैं।

अव्यय के अन्य नाम क्या है?

अव्यय शब्दों को अविकृत, अविकारी या अपरिवर्तनशील’ शब्द भी कहते हैं।

अव्यय के भेद

अव्यय के चार भेद होते हैं
(i) क्रियाविशेषण
(ii) संबंधबोधक
(iii) समुच्चयबोधक
(iv) विस्मयादिबोधक

संबंधबोधक अव्यय

वे अव्यय शब्द जो किसी संज्ञा या सर्वनाम शब्द के साथ जुड़कर उनका वाक्य के अन्य शब्दों के साथ संबंध स्थापित करते हैं, ‘ संबंधबोधक अव्यय’ शब्द कहलाते हैं।
-: संबंधबोधक शब्द प्रायः संज्ञा या सर्वनाम के बाद लगाए जाते हैं; किन्तु यदा-कदा संज्ञा या सर्वनाम के पहले भी आते हैं।
यथा:-
मनुष्य पानी के बिना जीवित नहीं सकता।
वह दिन भर पढ़ता रहा।
मेरे बिना वह नहीं रह सकता।
वह अस्पताल तक गया था।

प्रयोग के अनुसार ‘संबंधबोधक अव्यय’ शब्द दो प्रकार के होते हैं

1. संबद्ध संबंधबोधक:

ये संज्ञाओं की विभक्तियों के आगे आते हैं।
यथा:-
भूख के मारे
पूजा से पहले
धन के बिना

2. अनुबद्ध संबंधबोधक:

ये संज्ञा के विकृत रूप के साथ आते हैं।
यथा:-
पुत्रों समेत
सहेलियों सहित
किनारे तक

व्युत्पत्ति के अनुसार भी संबंधबोधक अव्यय शब्द दो प्रकार के होते हैं

1. मूल संबंधबोधक:

बिना, पर्यंत, नाईं, समेत, पूर्वक

2. यौगिक संबंधबोधक:

ये विभिन्न प्रकार के शब्दों से बनते हैं।
यथा:
संज्ञा से:-
और, अपेक्षा, नाम, वास्ते, विशेष, पलटे
विशेषण से:- ऐसा, जैसे, जवानी, सरीखे, तुल्य,
क्रिया से:- लिए, मारे, करके,
क्रियाविशेष्ण से:- ऊपर, बाहर, भीतर, यहाँ, पास

समुच्चयबोधक अव्यय

वे अव्यय शब्द जो शब्दों, वाक्यांशो, वाक्यों को परस्पर जोड़ने या अलग करने का कार्य करते हैं, ‘ समुच्चयबोधक अव्यय’ कहलाते हैं।
यथा:
राम आया और श्याम चला गया।
दो और दो चार होते हैं।
श्याम ने कठिन परिश्रम किया परन्तु सफल नहीं हो सका।

समुच्चयबोधक के भेद

समुच्चयबोधक अव्यय के दो भेद हैं
1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक
2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक

1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक:-

ये भी चार प्रकार के होते हैं
1. संयोजक:– ये दो पदों या वाक्यों को जोड़ते हैं।
यथा:- इसके अंतर्गत और, तथा, एवं, व आदि आते हैं।
कविता, सविता, आरती और मेघा बहुत अच्छी हैं।
सूरज उगा और अँधेरा भागा।

2. विभाजक/ विभक्तक:- ये दो या अधिक पदों या वाक्यों को जोड़कर भी अर्थ को बाँट देते हैं यानी अलग कर देते हैं।
यथा:- इसके अन्तर्गत अथवा, या, वा, किंवा, कि चाहे, तो, क्या-क्या, न कि, अपितु आदि आते हैं।
रवीन्द्र या कवीन्द्र स्कूल जाएगा।
वह जाएगा या मैं जाऊँगा।

3. विरोधदर्शक:- ये वाक्य के द्वारा पहले का निषेध या अपवाद सूचित करते हैं।
यथा:-इसके अन्तर्गत किन्तु, परन्तु, लेकिन, मगर, अगर, वरन्, बल्कि, पर आदि आते है।
वह बोला तो था; परन्तु इतना साफ-साफ नहीं।

4. परिणामदर्शक:- इनसे जाना जाता है कि इनके आगे के वाक्य का अर्थ पिछले वाक्य के अर्थ का फल है।
यथा:-इसके अंतर्गत इसलिए, सो, अतः, अतएव आदि आते हैं।
सूरज उगा इसलिए अँधेरा भागा।

व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय

इसके द्वारा जुड़े हुए शब्दों या वाक्यों में से पहले शब्द या वाक्य का स्पष्टीकरण पिछले शब्द या वाक्य से जाना जाता है इसके अन्तर्गत कि, जो, अर्थात्, यानी, यदि आदि आते हैं।
1. कारणवाचक:- इस अव्यय से आरंभ होनेवाला वाक्य अपूर्ण या समर्थन करता है इसके अंतर्गत क्योंकि, चूँकि, इस कारण, जो कि, इसलिए कि आदि आते हैं।
2. उद्देश्यवाचक:- इस अव्यय के बाद आनेवाला वाक्य दूसरे वाक्य का उद्देश्य सूचित करता है। इसमें कि, जो, ताकि, जिससे कि का प्रयोग होता है।
3. संकेतवाचक:- इस अव्यय के कारण पूर्व वाक्य में जिस घटना का वर्णन रहता है उससे उत्तरवाक्य की घटना का संकेत पाया जाता है। इसके अंतर्गत कि यदि-तो, जो-तो, चाहे-परन्तु, यद्यपि-तथापि, आदि आते हैं। Avyay In Hindi Pdf

विस्मयादिबोधक अव्यय

जिन अव्ययों से हर्ष, शोक, घृणा, आश्चर्य, प्रशंसा, प्रसन्नता, भय आदि भाव व्यजित होते हैं तथा जिनका संबंध वाक्य के किसी पद से नहीं होता, उन्हें ‘ विस्मयादिबोधक अव्यय’ कहते हैं।
यथा:-
हाय! वह चल बसा।
अहा! कितना सुन्दर दृश्य है।
छि:! छि: !! कितनी गन्दगी है।

विस्मयादिबोधक अव्यय के भेद

I. आश्चर्यबोधक:- क्या! अरे! अहा! हैं! सच! ओह! ऐं! आदि।
II. शोकबोधक:- उफ! आह! हाय! हेरामा राम-राम! बाप-रे-बाप! त्राहि-त्राहि! तोबा-तोबा! आदि।
III. हर्षबोधक:- वाह! धन्य! अहा! क्या खूब! क्या कहना! आदि।
iv. प्रशंसाबोधक:- शाबाश! वाह! अति सुन्दर! आदि।
V. क्रोधबोधक:- अरे! चुप! आदि।
VI. भयबोधक:- हाय! बाप रे! आदि।
VII. चेतावनीबोधक:- खबरदार! बचो! सावधान! आदि
VIII. घृणाबोधक:- छिः छिः! धिक्कार! उफ्! धत्! थू-थू! हट्! दुर्! धत्तेरे कि! आदि।
IX. इच्छाबोधक:- काश! हाय! आदि।
X. सम्बोधनबोधक:- अजी! हे! अरे! सुनते हो! रे! अहो! आदि।
XI. अनुमोदनबोधक:- अच्छा! हाँ! हाँ-हाँ! ठीक! हाँ! जी! आदि।
XII. आशीर्वादबोधक:- शाबाश! जीते रहो! खुश रहो! आदि।

नोट:- कई विद्वान ‘ निपात’ को भी अव्यय मानते हैं।

निपात की परिभाषा

वाक्य में किसी शब्द या पद के बाद जो अव्यय लगकर एक विशेष बल या अवधारणा को व्यक्त करते हैं, उन्हें ‘ निपात’ कहते हैं।
यथा:-
वह तो जयपुर जाएगा।
श्याम ने ही उसे मारा है।
जन्मोत्सव पर उसने हमें भी बुलाया है।
ऊपर के वाक्यों में तो, ही, भी वाक्यों में एक विशेष बल देते हैं; अतः ये सभी निपात माने जाएंगे।

निपात के भेद

निपात के निम्न नौ भेद माने जाते हैं
I. बलदायक या सीमाबोधक निपात:-
तो, ही, तक, सिर्फ, केवल, भी, पर।
II. अवधारणाबोधक निपात:- ठीक, लगभग, करीब, तकरीबन।
III.स्वीकार्यबोधक निपात:- हाँ, जी, जी हाँ।
IV. निषेधबोधक निपात:- मत, ना।
V. प्रश्नबोधक निपात:- क्या, कब।
VI. नकारबोधक निपात:- नहीं, जी नहीं, न।
VII. विस्मयादिबोधक निपात:- क्या, काश।
VIII. आदरबोधक निपात:- जी।
IX. तुलनाबोधक निपात:– सा, से, सी।

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