motivation notes pdf अभिप्रेरणा का अर्थ, परिभाषा और महत्व की इस महत्वपूर्ण पोस्ट में अभिप्रेरणा का अर्थ, अभिप्रेरणा का महत्व, अभिप्रेरणा का महत्व का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है| यह लेख राजस्थान की विभिन्न भर्ती परीक्षाओ के लिए अति महत्वपूर्ण है| यह लेख REET, CTET, PTET, UPTET, RAS, UPSC, RPSC 1st grade, 2nd grade, PTI, आदि भर्ती परीक्षाओ के विद्यार्थियों के लिए अति महत्वपूर्ण है, राजस्थान भर्ती परीक्षाओ की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों को एक बार इस लेख का अध्ययन अवश्य कर लेना चाहिए |
Contents
motivation notes pdf
अभिप्रेरण
Motivation ‘ शब्द की उत्पति लेटिन भाषा के Motum या Movere से हुई हैं, जिसका अर्थ है To move (गति करना) अर्थात जो कारक हमारे जीवन में गति प्रदान करता है उसका नाम है- अभिप्रेरणा अभिप्रेरणा का शाब्दिक अर्थ-आन्तरिक उत्तेजना।
अभिप्रेरणा की परिभाषाएँ
मैल्टन – ” अभिप्रेरणा अधिगम की अनिवार्य शर्त है।
गुड के अनुसार – “किसी क्रिया को प्रारम्भ करने,जारी रखने तथा नियत्रित रखने की प्रकिया अभिप्रेरणा है।
स्किनर – ” अभिप्रेरणा अधिगम का सर्वोत्तम राजमार्ग हैं।”
लावेल – ” अभिप्रेरणा एक मनोवैज्ञानिक व आन्तरिक प्रक्रिया है, जो आवश्यकता से प्रारम्भ होती है।तथा उन क्रियाओं की ओर ले जाती है जो आवश्यकता को सन्तुष्ट करती है।
गिलफोर्ड – अभिप्रेरणा वो विशेष कारक या दशा है जो किसी क्रिया (व्यवहार) को प्रारम्भ करने व उसे बनाए रखने के लिए प्रवृत करता है|
क्रेच व क्रेचफिल्ड – अभिप्रेरणा हमारे क्यों का उतर देती है
मेकडूगल – अभिप्रेरणा वे शारीरिक मनोवैज्ञानिक दशाए है जो किसी काम को करने के लिए प्रेरित करती है”।
सोरेन्सन – अभिप्रेरणा को अधिकाम का आधार कहा है।
मेकडूगल – ” अभिप्रेरणा की व्याख्या जन्मजात मूल प्रवृतियों के आधार पर की जा सकती हैं।”
बुडवर्थ – अभिप्रेरणा वह तात्कालिक बल हैं जो व्यवहार को उर्जा प्रदान करता है।
क्रो एंड क्रो – अभिप्रेरणा का संबंध सीखने में रुचि उत्पन्न करने से होता है।
अभिप्रेरणा की प्रकृति और विशेषताएँ
- अभिप्रेरणा एक आन्तरिक व व मनोवैज्ञानिक (भावात्मक) प्रकिया है।
- का प्रारम्भ आवश्यक्ता से होता है
- यह लक्ष्य निर्देशित प्रक्रिया है।
- अभिप्रेरणा रूचि व ध्यान केन्द्रित प्रकिया है।
- अभिप्रेरणा एक चयनात्मक प्रक्रिया\ क्रमिक प्रकिया है।
- यह साध्य (target) न होकर एव साधन है।
- अभिप्रेरणा की गति प्रत्येक व्यक्ति में अलग-अलग होती है।
- अभिप्रेरणा अमूर्त समप्रत्यय हैं।
- इस में निरन्तरता पायी जाती है अर्थात परिस्थितियों कैसी भी हो रुकना नही हैं।
- अभिप्रेरणा जन्मजात एवं अर्जित दोनों प्रकार की होती है
अभिप्रेरणा के प्रकार
मुरूय रुप से दो प्रकार
आन्तरिक/ प्राकृतिक सकारात्मक /अन्मजात
जब हम किसी क्रिया या कार्य को स्वयं की इच्छा से करते है तथा जिसको करने से सुख संतोष व आनन्द की प्राप्ति होती है तो यह आन्तरिक अभिप्रेरणा कहलाती हैं। जैसे-भुख, प्भास नींद, काम, मलभूत्र त्याग, सफलता की इच्छा, मातृत्व प्रेम श्रद्धा भाव आराम, आत्म सम्मान, खेल
यह अभिप्रेरणा अपने आप में एक अन्त मानी जाती है। अर्थात जब तक आप लक्ष्य को प्राप्त नही कर लेते तब तब आप रुकते नहीं है।
(ii) बाहम/ कृत्रिम / नकारात्मक/ अर्जित अभिप्रेरणा
जब व्यक्ति किसी क्रिया या कार्य को स्वभं की इच्छा से नहीं बल्कि दुसरों के दबाब या प्रभाव में आकर करता है बाह्य अभिप्रेरणा कहलाती है। जैसे प्रशंसा, पुरस्कार, दंड, प्रतिस्पर्धा परीक्षा परिणाम श्रव्य-दृश्य सामग्री शिक्षक का प्रभाव|
अधिगम में अभिप्रेरणा की भूमिका
- बालक के व्यवहार में वांछित परिवतन करने में उपयोगी
- अधिगम की गति तीव्र करने में।
- सामाजिक व मानसिक गुणों का विकास करने में उपयोगी
- रूचि उत्पन्न करने व ध्यान केन्द्रित करने में
- चरित्र निर्माण में उपयोगी।
- आत्म-अनुशासन में उपयोगी।
- क्रमिक रुप से सीखने में उपयोगी।
- व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार शिक्षा प्रदान करने में उपयोगी।
- अधिगम सर्वोत्तम होगा जब अभिप्रेरणा होगी
अभिप्रेरणा के तत्व (Elements of motivation)
अभिप्रेरणा के तत्व / कारक चार होते हैं
(i) (आवश्यकता (Need)
(ii) चालक/ पार्नोद / अंतर्नोदी (Drives)
(iii) उद्दीपन/ प्रोत्साहन (Incentive)
(iv) प्रेरक (Motive)
(i) आवश्यकता (Neec):- शरीर में किसी चीज की कमी या अति आवश्यकता कहलाती है।
अभिप्रेरना को आधार प्रदान करने का कार्य आवश्यकता के द्वारा किया जाता है। आवश्यकता ही वह तत्व है जिसके अभाव में अभिप्रेरणा चक्र को प्रारम्भ नहीं किया जा सकता।
आवश्यकताएँ दो प्रकार की होती है
(i) शारीरिक आवश्यकताए
भोजन, पानी, काम (सबसे कम जरुरी आवश्कयता) नींद, मलभूत्र त्याग।
Note-:- शारीरिक आवश्यताकओं को मूलभूत /जैविक / चक्रीय आवशयकता भी कहा जाता है।
(ii) सामाजिक/ मनोवैज्ञानिक आवश्यकताए
प्रेम, संबंध, उपलब्धी, आत्म-सम्मान, जिज्ञासा, सुरक्षा
द्विआवश्यकता सिद्धान्त
द्विआवश्यकता सिद्धान्त हेनरी मुरे ने दिया था। इन्होने कहा कि 12 शारीरिक आवश्यकता होती है। तथा 28 सामाजिक व मनोवैज्ञानिक आवश्कयताए होती है।
अब्राहम मैस्लो
मानवतावादी मनोविज्ञान के जनक इनके अनुसार मनुष्य आवश्यकता से प्रेरित होता है
इनकी पुस्तक – ‘अभिप्रेरणा तथा व्यक्तित्व
सिद्धान्त – आवश्यता पदानुक्रम सिद्धान्त 1954 में दिया, संशोधन ।959
सिद्धान्त के अन्य नाम – माँग सिद्धान्त/ आत्मबल का सिद्धान्त
- इन आवश्यकताओं को इसने निम्न स्तरीय तथा उच्च स्तरीभ आवश्यकताओं में विभाजित किया।
- इन्होने समग्र व्यक्ति की अवधारणा पर बल दिया।
(i) शारीरिक/ दैहिक/ जैवकी आवश्यकताए – भुख, प्यास, नींद, काम
(ii) सुरक्षा की आवश्यकता – मकान निर्माण, बैंक में पैसा जमा करवाना, शेयर मार्केट निवेश, जीवन बीमा
(ii) सामाजिक आवश्यकता – प्रेम, स्नेह, संबंध
(iv) सम्मान की आवश्यकता – संबंधियों व समाजसे सम्मान
(v) आत्मसिद्धि की आवश्यकता – जिसके लिए भगवान ने आपको भेजा है आप उस लभ को प्राप्त कर ले।
- पावलाव का प्रयोग
- पॉवलाव का शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत
- कोहलबर्ग का नैतिक विकास सिद्धांत
- जीन पियाजे का नैतिक विकास सिद्धांत
- मनोसामाजिक विकास सिद्धांत : एरिक एरिक्सन
- मनोलैंगिक विकास सिद्धांत : सिग्मंड फ्रायड
- Eating Disorder In Hindi ऐनोरेक्सिया नरवोसा, बुलीमिया नरवोसा व बिन्गी आहार
- स्थूल पेशीय कौशल व सूक्ष्म पेशीय कौशल
- नवजात शिशु की अवस्थाएँ- मोरो, रूटिंग, बेबीन्सकी, पकड़ना, फिटल एक्टिविटीज व ब्लिंकिंग
- किशोरावस्था की विशेषताएं
- बाल्यावस्था की विशेषताएँ
- शैशवावस्था की विशेषताएँ
- बाल विकास को प्रभावित करने वाले कारक
- अभिवृद्धि और विकास में अंतर
- विकास के सिद्धांत
- मनोविज्ञान के सिद्धांत PDF, सम्प्रदाय व उनके प्रवर्तक
- कुसमयोजन
- संकल्पना मानचित्र और संकल्पना मानचित्र के शैक्षिक महत्व