प्रिय दोस्तों समास की परिभाषा और भेद SAMAS KI PRIBHASHA OR BHED की इस महत्वपूर्ण पोस्ट में समस की परिभाषा क्या है? समस के कितने भेद होते है? आदि को विस्तारपूर्वक समझाया गया है| यह पोस्ट REET, CTET, UPTET, PATWAE, V.D.O., RAS, RPSC 1st GRADE, 2nd GRADE आदि के लिए महत्वपूर्ण है|
Contents
Samas Ki Pribhasha Or Bhed
समास शब्द का अर्थ
समास का अर्थ संक्षिप्त या छोटा करना है।
समास-की परिभाषा
दो या दो से अधिक शब्दों के मेल या संयोग को समास कहते हैं। इस मेल में विभक्ति चिह्नों का लोप हो जाता है।
जैसे- दिन और रात में तीन शब्दों के प्रयोग के स्थान पर ‘ दिन-रात’ दो शब्दों द्वारा भी व्यक्त किया जा सकता है।
समास के प्रकार
समास के मुख्य रूप से छह प्रकार होते है
1. तत्पुरुष समास
2. कर्मधारय समास
3. द्वंद्व समास
4. द्विगु समास
5. अव्ययीभाव समास
6.बहुब्रिही समास
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1. तत्पुरुष समास
इस समास में पहला पद गौण व दूसरा पद प्रधान होता है। इसमें कारक के विभक्ति चिह्नों का लोप हो जाता है|
छः कारकों के आधार पर इस समास के भी छ: भेद किए गए हैं। (कर्ता व सम्बोधन कारक को छोड़कर)
1. कर्म तत्पुरुष समास
‘को’ विभक्ति चिह्नों का लोप
ग्रामगत – ग्राम को गया हुआ
पदप्राप्त – पद को प्राप्त
सर्वप्रिय – सभी को प्रिय
यशप्राप्त – यश को प्राप्त
शरणागत – शरण को आया हुआ
सर्वप्रिय – सभी को प्रिय
2. करण तत्पुरुष समास
‘से’ चिह्न का लोप होता है
भावपूर्ण – भाव से पूर्ण
बाणाहत – बाण से आहत
हस्तलिखित – हस्त से लिखित
बाढ़पीड़ित – बाढ़ से पीड़ित
3. सम्प्रदान तत्पुरुष समास
‘के लिए’ चिह्न का लोप
गुरु दक्षिणा – गुरु के लिए दक्षिणा
राहखर्च – राह के लिए खर्च
बालामृत – बालकों के लिए अमृत
युद्धभूमि – युद्ध के लिए भूमि
4. अपादान तत्पुरुष समास
‘से’ पृथक या अलग के लिए चिह्न का लोप
देशनिकाला – देश से निकाला
बंधनमुक्त – बंधन से मुक्त
पथभ्रष्ट – पथ से भ्रष्ट
ऋणमुक्त – ऋण से मुक्त
5. संबंध तत्पुरुष कारक
‘ का’, ‘ के’, ‘ की’ चिह्नों का लोप
गंगाजल – गंगा का जल
नगरसेठ – नगर का सेठ
राजमाता – राजा की माता
विद्यालय – विद्या का आलय
6. अधिकरण तत्पुरुष समास
‘में’, ‘ पर’ चिह्नों का लोप
जलमग्न – जल में मग्न
आपबीती – आप पर बीती
सिरदर्द – सिर में दर्द
घुड़सवार – घोड़े पर सवार
2. कर्मधारय समास
इस समास के पहले तथा दूसरे पद में विशेषण, विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध होता है।
जैसे
महापुरुष – महान है जो पुरुष
श्वेतपत्र – श्वेत है जो पत्र
महात्मा – महान है जो आत्मा
मुखचन्द्र – चन्द्रमा रूपी मुख
चरणकमल – कमल के समान चरण
विद्याधन – विद्या रूपी धन
भवसागर – भव रूपी सागर
3. द्वंद्व समास
इस समास में दोनों पद समान रूप से प्रधान होते हैं। इसके दोनों पद योजक-चिहन द्वारा जुड़े होते हैं तथा समास-विग्रह करने पर ‘ और’, ‘ या’ ‘ अथवा’ तथा ‘ एवं’ आदि लगते हैं।
जैसे
रात-दिन – रात और दिन
सीता-राम – सीता और राम
दाल-रोटी – दाल और रोटी
माता-पिता – माता और पिता
आयात-निर्यात – आयात और निर्यात
हानि-लाभ – हानि या लाभ
आना-जाना – आना या जाना
4. द्विगु समास
इस समास का पहला पद संख्यावाचक अर्थात गणना-बोधक होता है तथा दूसरा पद प्रधान होत है क्योंकि इसमें बहुधा यह जाना जाता है कि इतनी वस्तुओं का समूह है।
जैसे
नवरत्न – नौ रत्नों का समूह
सप्ताह – सात दिनों का समूह
त्रिलोक – तीन लोकों का समूह
सप्तऋषि – सात ऋषियों का समूह
शताब्दी – सौ अब्दों (वर्षों) का समूह
त्रिभुज – तीन भुजाओं का समूह
सतसई – सात सौ दोहों का समूह
5. अव्ययीभाव समास
इस समास का पहला पद अव्यय होता है। और उस अव्यय पद का रूप लिंग, वचन, कारक में नहीं बदलता वह सदैव एकसा रहता है इसमें पहला पद प्रधान होता है।
जैसे
यथाशक्ति – शक्ति अनुसार
यथा समय – समय के अनुसार
प्रतिक्षण – हर क्षण
यथा संभव – जैसा संभव हो
आजीवन – जीवन भर
भरपेट – पेट भरकर
आजन्म – जन्म से लेकर
आमरण – मरण तक
प्रतिदिन – हर दिन
बेखबर – बिना खबर के
6. बहुब्रिही समास
जिस समास में पूर्वपद व उत्तरपद दोनों ही गौण हों और अन्य पद प्रधान हों और उनके शाब्दिक अर्थ को छोड़कर एक नया अर्थ निकाला जाता है, वह बहुब्रीहि समास कहलाता है।
जैसे- लम्बोदर अर्थात लम्बा है उदर (पेट) जिसका/ दोनों पदों का अर्थ प्रधान न होकर अन्यार्थ ‘ गणेश’ प्रधान है।
घनश्याम – बादल जैसा काला अर्थात कृष्ण
नीलकंठ – नीला कंठ है जिसका अर्थात शिव
दशानन – दस आनन हैं जिसके अर्थात रावण
गजानन – गज के समान आनन वाला अर्थात गणेश
त्रिलोचन – तीन हैं लोचन जिसके अर्थात् शिव
हंस वाहिनी – हंस है वाहन जिसका अर्थात सरस्वती
महावीर – महान है जो वीर अर्थात हनुमान
दिगम्बर – दिशा ही है वस्त्र जिसका अर्थात शिव
चतुर्भुज – चार भुजाएँ हैं जिसके अर्थात विष्णु
कर्मधारय और बहुब्रीहि समास में अन्तर
कर्मधारय समास में दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य तथा उपमान-उपमेय का संबंध होता है। लेकिन बहुब्रीहि समास में दोनों पदों का अर्थ प्रधान न होकर ‘ अन्यार्थ’ प्रधान होता है।
जैसे-कमलनयन-कमल के समान नयन (कर्मधारय) कमल के समान है नयन जिसके अर्थात ‘ विष्णु’ अन्यार्थ लिया गया है (बहुब्रीहि समास)
बहुब्रीहि व द्विगु समास में अन्तर
द्विगु समास में पहला पद संख्यावाचक होता है और समस्त पद समूह का बोध कराता है। लेकिन बहुब्रीहि समास में पहला पद संख्यावाचक होने पर भी समस्त पद से समूह का बोध न होकर अन्य अर्थ का बोध कराता है।
जैसे- चौराहा अर्थात चार राहों का समूह (द्विगु समास) चतुर्भुज-चार हैं भुजाएँ जिसके (विष्णु) अन्यार्थ (बहुब्रीहि समास)
संधि और समास में अन्तर
संधि में दो वर्गों का मेल होता है जबकि समास में दो या दो अधिक शब्दों की कमी न होकर उनके निकट आने के कारण पहले शब्द की अन्तिम ध्वनि और दूसरे शब्द की आरम्भिक ध्वनि में परिवर्तन आ जाता है
जैसे- ‘लम्बोदर’ में ‘ लम्बा ‘ शब्द की अन्तिम ध्वनि’ आ ‘ और’ उदर ‘ शब्द की आरम्भिक ध्वनि’ उ ‘ में’ आ ‘ व’ उ ‘ के मेल से’ ओ ‘ ध्वनि में परिवर्तन हो जाता है।
किन्तु समास में ‘ लम्बोदर’ का अर्थ ‘ लम्बा है उदर जिसका’ शब्द समूह बनता है। अतः समास मूलतः शब्दों की संख्या कम करने की प्रक्रिया है।
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समास की परिभाषा और भेद
FAQ
उत्तर:- दो या दो से अधिक शब्दों के मेल या संयोग को समास कहते हैं।
उत्तर:- संधि के 6 भेद होते है|
समास के मुख्य रूप से छह प्रकार होते है
1. तत्पुरुष समास
2. कर्मधारय समास
3. द्वंद्व समास
4. द्विगु समास
5. अव्ययीभाव समास
6.बहुब्रिही समास
उत्तर:- इस समास में पहला पद गौण व दूसरा पद प्रधान होता है। इसमें कारक के विभक्ति चिह्नों का लोप हो जाता है| उसे तत्पुरुष समास कहते है|
उत्तर:- इस समास के पहले तथा दूसरे पद में विशेषण, विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध होता है।
उत्तर;- इस समास का पहला पद संख्यावाचक अर्थात गणना-बोधक होता है तथा दूसरा पद प्रधान होत है क्योंकि इसमें बहुधा यह जाना जाता है कि इतनी वस्तुओं का समूह है।
उत्तर:- इस समास में दोनों पद समान रूप से प्रधान होते हैं। इसके दोनों पद योजक-चिहन द्वारा जुड़े होते हैं तथा समास-विग्रह करने पर ‘ और’, ‘ या’ ‘ अथवा’ तथा ‘ एवं’ आदि लगते हैं।
उत्तर:- इस समास का पहला पद अव्यय होता है। और उस अव्यय पद का रूप लिंग, वचन, कारक में नहीं बदलता वह सदैव एकसा रहता है इसमें पहला पद प्रधान होता है।
उत्तर:- इस समास का पहला पद अव्यय होता है। और उस अव्यय पद का रूप लिंग, वचन, कारक में नहीं बदलता वह सदैव एकसा रहता है इसमें पहला पद प्रधान होता है।
उत्तर:- कर्मधारय समास में दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य तथा उपमान-उपमेय का संबंध होता है। लेकिन बहुब्रीहि समास में दोनों पदों का अर्थ प्रधान न होकर ‘ अन्यार्थ’ प्रधान होता है।
जैसे-कमलनयन-कमल के समान नयन (कर्मधारय) कमल के समान है नयन जिसके अर्थात ‘ विष्णु’ अन्यार्थ लिया गया है (बहुब्रीहि समास)
उत्तर:- द्विगु समास में पहला पद संख्यावाचक होता है और समस्त पद समूह का बोध कराता है। लेकिन बहुब्रीहि समास में पहला पद संख्यावाचक होने पर भी समस्त पद से समूह का बोध न होकर अन्य अर्थ का बोध कराता है।
उत्तर:- संधि में दो वर्गों का मेल होता है जबकि समास में दो या दो अधिक शब्दों की कमी न होकर उनके निकट आने के कारण पहले शब्द की अन्तिम ध्वनि और दूसरे शब्द की आरम्भिक ध्वनि में परिवर्तन आ जाता है
जैसे- ‘लम्बोदर’ में ‘ लम्बा ‘ शब्द की अन्तिम ध्वनि’ आ ‘ और’ उदर ‘ शब्द की आरम्भिक ध्वनि’ उ ‘ में’ आ ‘ व’ उ ‘ के मेल से’ ओ ‘ ध्वनि में परिवर्तन हो जाता है।
किन्तु समास में ‘ लम्बोदर’ का अर्थ ‘ लम्बा है उदर जिसका’ शब्द समूह बनता है। अतः समास मूलतः शब्दों की संख्या कम करने की प्रक्रिया है।
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