आज की इस पोस्ट में हिंदी शिक्षण विधियों के एक महत्वपूर्ण टॉपिक समग्र एंव सतत मूल्याकंन ( samgr aenv satat mulyakan) का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है|
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन बच्चों के विकास के समस्त क्षेत्रों का सतत् एवं नियमित आकलन है जिसमें विभिन्न
विधियों एवं उपकरणों के माध्यम से बच्चों का आकलन किया जाता है।
वर्ष 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सतत् मूल्यांकन की अवधारणा दी गई जिसका प्रभाव राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा
(NCF) -2005 में भी देखा गया। सर्वप्रथम अक्टूबर, 2009 में केन्द्रिय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE), नई दिल्ली ने
सीबीएससी पाठ्यक्रम वाले विद्यार्थियों में कक्षा -9 में लागू किया।
Contents
समग्र (व्यापक) मूल्यांकन (Comprehensive Evaluation)
- इसका आशय शिक्षार्थी के समग्र प्रकार से किये गये मूल्यांकन से है। इसमें छात्र की समस्त प्रकार की उपलब्धियों एवं कमियों का ज्ञान शिक्षक को हो जाता है।
- समग्र मूल्यांकन के अंतर्गत छात्र के बौद्धिक, संवेगात्मक, व्यवहार कुशलता, उसके वैयक्तिक जीवन, पारिवारिक जीवन, सामाजिक विकास में उसकी दक्षताओं का पता लगाया जा सकता है।
सतत् मूल्यांकन (Continuous Evaluation)
- इससे आशय ऐसा मूल्यांकन जो शिक्षण कार्य के दौरान समय-समय पर लगातार चलता रहता है।
- सतत् मूल्यांकन के तहत् समय-समय पर परीक्षाएँ आयोजित करके, मॉडल, चार्ट व तस्वीरें बनाकर, शैक्षणिक भ्रमण, अंत्याक्षरी, वाद-विवाद प्रतियोगिता आयोजित कराकर निरंतर विद्यार्थियों का मूल्यांकन चलता रहता है।
सतत् एवं समग्र मूल्यांकन प्रणाली के उद्देश्य
- विद्यार्थियों में रटने की प्रवृत्ति को रोकना।
- छात्रों में पाठ्यपुस्तक के संबंध में अधिक सूझ एवं समझ विकसित करने को प्रोत्साहन देना।
- छात्रों में परीक्षा सम्बंधी तनाव को दूर करना।
- बालकों के व्यक्तित्व एवं शैक्षिक उपलब्धि तथा समझ के आधार पर गुणात्मक मूल्यांकन को आधार प्रदान कर क्रियान्वित करना एवं पांच बिंदु ग्रेडिंग व्यवस्था लागू करना।
व्यापक एवं सतत् मूल्यांकन के सिद्धान्त
- सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन तथा सीखने की प्रक्रिया साथ-साथ चलती है, जिसमें बच्चे को सीखने के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराने के बाद ही मूल्यांकन किया जाता है।
- सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन में बच्चे की प्रगति की तुलना उसके स्वयं की पिछली प्रगति से की जाती है न कि अन्य बच्चों की प्रगति से।
- सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन में बच्चे के सीखने की गति एवं क्षमता के अनुसार अलग-अलग गतिविधियों का उपयोग किया जाता है।
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन (सी.सी.ई.) के दोष
- सी.सी.ई. केवल उन्हीं दशाओं में लागू किया जा सकता है जहाँ शिक्षक-छात्र अनुपात कम होता है।
- सी.सी.ई. में समय और धन दोनों अधिक लगते हैं।
- सी.सी.ई. के माध्यम से सिफारिशी बालक अधिक अंक प्राप्त कर लेते हैं।
- सी.सी.ई. में शिक्षकों को पक्षपात करने के पूरे अवसर प्राप्त होते हैं।
- सी.सी.ई. प्रणाली भाई-भतीजावाद से प्रभावित रहती है।
शैक्षिक उपलब्धियों को मापने का नौ प्वाइंट वाला ग्रेडिंग पैमाना नीचे दिया जा रहा है|
अंक श्रृखला | श्रेणी (ग्रेड) | श्रेणी-बिंदु (ग्रेड प्वाइंट) |
91-100 | ए 1 | 10.0 |
81-90 | ए 2 | 9.0 |
71-80 | बी 1 | 8.0 |
61-70 | बी 2 | 7.0 |
51-60 | सी 1 | 6.0 |
41-50 | सी 2 | 5.0 |
33-40 | डी | 4.0 |
21-32 | ई 1 | |
00-20 | ई 4 |