स्किनर का प्रयोग ( Skinner’s Experiment ) : इस पोस्ट में स्किनर ने प्रथम प्रयोग किस पर किया? एंव स्किनर ने द्वितीय प्रयोग किस पर किया? स्किनर ने कितने प्रकार का पुनर्बलन दिया? आदि के बारे में विस्तार पूर्वक समझाया गया है
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स्किनर का प्रथम प्रयोग चूहे पर | Skinner’s Experiment
स्कीनर ने प्रथम प्रयोग 1938 में किया गया। इस प्रयोग के लिए स्कीनर ने एक भूखे चूहे को बार प्रेसिंग ऑपरेटर्स बॉक्स में बन्द कर दिया। प्रारम्भ में चूहा बॉक्स में इधर-उधर घूमता रहा तथा उछल-कूद करता रहा। इन्हीं गतिविधियों में बॉक्स का लीवर दब गया तथा घण्टी की आवाज के उपरान्त भोजन की तश्तरी में भोजन का टुकड़ा आ गया। चूहा भोजन को देखकर उसे खा लेता है। इस प्रकार के कुछ प्रयासों के बाद चूहा लीवर दबाकर तश्तरी में भोजन गिराना सीख लेता है।
यहाँ यह ज्ञातव्य है कि चूहा लीवर को दबाने के लिए पूर्ण स्वतंत्र होता है तथा जितने बार भी वह लीवर को दबायेगा प्रत्येक बार ही घण्टी की आवाज के बाद भोजन का टुकड़ा तश्तरी में गिरेगा। स्कीनर ने भोजन पाने के बाद समय अन्तराल में लीवर को दबाने और चूहे के व्यवहार का विश्लेषण करके निष्कर्ष निकाला कि भोजन रूपी पुनर्बलन चूहे को लीवर दबाने के लिए प्रेरित करता है एवं पुनर्बलन के फलस्वरूप चूहा लीवर दबाकर भोजन प्राप्त करना सीख जाता है।
अनुक्रिया पुरस्कार या दण्ड प्राप्ति का साधन बनती है, इसलिए इसे नैमितिकी अधिगम या साधनात्मक अधिगम कहा जाता है, इसे रिक्त प्राणी उपागम भी कहा जाता है।
स्कीनर का द्वितीय प्रयोग कबूतरों पर
यह प्रयोग 1943 में किया गया। इसके अंतर्गत कबूतरों पर प्रयोग करने के लिए स्कीनर ने कबूतर बॉक्स (Pigeon Box) नामक उपकरण तैयार किया जिसमें कबूतर अपनी चोंच (Beak) के द्वारा बॉक्स में लगी एक कुंजी पर चोंच मारकर (Pecking) कुंजी को दबाता है तथा भोजन का दाना (Food Grain) प्राप्त करता है। अपने विभिन्न प्रयोगों से प्राप्त परिणामों के आधार पर स्कीनर ने अधिगम के क्रियाप्रसूत सिद्धांत को प्रस्तुत किया।
स्कीनर ने क्रियाप्रसूत अनुबंधन सिद्धांत में दो प्रकार के व्यवहार बताये हैं
1. अनुक्रिया व्यवहार\प्रतिवादी अनुक्रिया
वह अनुक्रियाएँ जो किसी उद्दीपक के कारण होती है, उन्हें अनुक्रिया व्यवहार कहा जाता है।
जैसे :- पिन चुभने पर हाथ हटा लेना, खाना दिखने पर लार टपकना। आदि।
2. क्रिया प्रसूत व्यवहार
वह अनुक्रिया जो स्व इच्छा से होती है अर्थात् बिना उद्दीपक के हो, उसे क्रियाप्रसूत व्यवहार कहा जाता है।
जैसे :- बच्चे द्वारा खिलौनों से खेलना, व्यक्ति द्वारा अपने हाथ-पाँव यूँ ही हिलाना।
चूहों के प्रयोग द्वारा स्कीनर ने चार प्रकार का पुनर्बलन दिया
1. सतत् पुनर्बलन- लगातार पुनर्बलन
2. आंशिक पुनर्बलन- कभी पुनर्बलन दे और कभी नहीं
3. अनुपात पुनर्बलन- कार्य के अनुपात में पुनर्बलन
4. अंतराल पुनर्बलन- समय के अनुसार पुनर्बलन
बच्चे विभिन्न प्रकार के यंत्रों जैसे रेडियो, कैमरा, टी.वी. आदि कोचलाना, नैमितिकी अनुबंधन के सिद्धांत के आधार पर सीखते हैं।
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FAQ
Ans. : स्किनर ने प्रथम प्रयोग चूहे पर किया|
Ans. : स्किनर ने द्वितीय प्रयोग कबूतरों पर पर किया |
Ans. : स्किनर ने प्रथम प्रयोग 1938 में किया |
Ans. : स्कीनर ने द्वितीय प्रयोग 1943 में किया |
Ans. : वह अनुक्रियाएँ जो किसी उद्दीपक के कारण होती है, उन्हें अनुक्रिया व्यवहार कहा जाता है।
जैसे :- पिन चुभने पर हाथ हटा लेना, खाना दिखने पर लार टपकना।
Ans. : वह अनुक्रिया जो स्व इच्छा से होती है अर्थात् बिना उद्दीपक के हो, उसे क्रियाप्रसूत व्यवहार कहा जाता है।
जैसे :- बच्चे द्वारा खिलौनों से खेलना, व्यक्ति द्वारा अपने हाथ-पाँव यूँ ही हिलाना।